काश! में पंछी होता,
उड़ता नीले अंबर के
इस छोर से उस छोर तक
नापने अंनत आकाश को,
काले घने बादलों के,
अंधकार के बीच,
गुमा देता खुद को,
बारिश आने से पहले ही,
बादलों से लिपटकर,
भिगा लेता खुद को,
दिन की धूप में
सूरज के साथ चलता,
उससे दोस्ती करता,
उसकी तपन में,
न्यौछावर कर देता,
अपना गीलापन,
जब रात आने को होती,
सितारों से बातें करता,
पंखों पर सितारों को बिठाकर,
दुनिया भर की सैर करता,,
चांद के सिर पर बैठकर,
आवाज देता अपने आपको,
वापस बुलाने के लिए,
काश! मैं पंछी होता।—कुमार आदित्य
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