तेरा चेहरा किताबी सा…

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ये जुगनू सी तेरी आंखें,

तेरा चेहरा है किताबी सा,

ये सोणी सी हंसी तेरी,

वो बेंदा लाज़बाबी सा,

तेरे माथे पे चमके है,

पिया का रंग लाली सा,

वो होठों पर खिली लाली,

लगे जैसे शबाबी सा।

यूं न देखो मुझे ऐसे,

कहीं न होश खो बैठूं,

कि तुझसे बात करना भी,

लगे है अफताबी सा।

लिखूं में प्रेम की कविता,

कहां मंजूर है जग को,

मगर मैं क्‍या करुं प्‍यारे,

कलम का रुख नबाबी सा।

नहीं लिखता हूं कुछ डर से,

कहीं वो रुठ न जाए,

मेरे दिल की लगी ऐसी,

कमल कोई गुलाबी सा।

जरा आ पास मेरे तू,

तुझे दिल से लगा लू मैं,

कि ठंडक में सूकूं दे दे,

तेरा मिलना अलावी सा।

ये जुगनू सी तेरी आंखें,

तेरा चेहरा है किताबी सा।——–कुमार आदित्‍य

फासला न करो ….

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मुझसे मुझको यूं ही जुदा न करो,

मैं मर जाऊंगा मुझे अलविदा न करो,

बहुत दुआ की है तुम्‍हें पाने के लिए,

मोहब्‍बत मेरी है इसे विदा न करो।
बहुत मुश्किल से मिलती है मुहब्‍बत यारों,

इसे आहिस्‍ते से संभालो अरे खुशी के लिए।।

 

तू मिले न मिले मुझसे ये मर्जी तेरी,

मुझसे दूर जाकर ये फासला न करो,

मैं खुद चला जाऊंगा तेरी राहों से ‘कुमार’,

तुम मुझे छोड़ने का हौसला ने करो। ——कुमार आदित्‍य

अधूरापन…

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अधूरे ख्‍वाव की बातें अधूरी रह गई यारों,

दूर तक चल नहीं पाया सफर ने गुफ्तगू कर ली,

हमारी वो मुलाकातें अधूरी रह गई यारों।

मुहब्‍बत कह रही थी जो कहानी उनसे मिलने की,

वो बेबस सी कहानी भी अधूरी रह गई यारों।

चले थे चांद पाने को डगर लम्‍बी लगी मुझको,

तमन्‍ना उनको पाने की अधूरी रह गई यारों।

लगी जब ठोकरें हमको तो चलना सीख सकते थे,

हमारी ये कलाकारी अधूरी रह गई यारों।

समय से रंग लेकर के उकेरी चंद तस्‍वीरें,

भरे बाजार में आकर अधूरी रह गई यारों।

लिखी जब भी गज़ल मैने मुहब्‍बत के उसूलों पर,

मेरी हर नजम् फिर से अधूरी रह गई यारों। —–कुमार आदित्‍य