ये जुगनू सी तेरी आंखें,
तेरा चेहरा है किताबी सा,
ये सोणी सी हंसी तेरी,
वो बेंदा लाज़बाबी सा,
तेरे माथे पे चमके है,
पिया का रंग लाली सा,
वो होठों पर खिली लाली,
लगे जैसे शबाबी सा।
यूं न देखो मुझे ऐसे,
कहीं न होश खो बैठूं,
कि तुझसे बात करना भी,
लगे है अफताबी सा।
लिखूं में प्रेम की कविता,
कहां मंजूर है जग को,
मगर मैं क्या करुं प्यारे,
कलम का रुख नबाबी सा।
नहीं लिखता हूं कुछ डर से,
कहीं वो रुठ न जाए,
मेरे दिल की लगी ऐसी,
कमल कोई गुलाबी सा।
जरा आ पास मेरे तू,
तुझे दिल से लगा लू मैं,
कि ठंडक में सूकूं दे दे,
तेरा मिलना अलावी सा।
ये जुगनू सी तेरी आंखें,
तेरा चेहरा है किताबी सा।——–कुमार आदित्य