शांति की तलाश…

मानक

कभी खोजता रहा खुद को, कभी खोजता रहा उसको,
इसी तलाश में ये सारी ज़िदगी गुजर गई।
कभी जिया, कभी मरा, कभी उठा, कभी गिरा,
गिर के उठने के प्रयास में ज़िदगी गुजर गई।
बचपने में थी तलाश माता-पिता के प्यार,
थोड़ी फटकार की, थोडे़ से दुलार की,
इसी प्यार की खोज में, ये बचपना गुजर गया।
जब हुए जवान तो ऊंचाई की तलाश थी,
उड़ें हम असमान में ऐसी कुछ आस थी,
इसी चांह की चाह में ये ज़िदगी गुजर गई।
इसी के साथ थी तलाश, एक ऐसे साथी की
जो चलता रहे मेरे साथ हाथ में हाथ डाल,
एक सच्चे साथी की तलाश में ये जिंदगी गुजर गई।
अब तो सारी जिं़दगी ही एक तलाश बन गई,
खुद की जगह ख़ुदा को खोजता हूँ फिर रहा,
मिलेगा एक दिन वो मुझे, मुझको ऐसी आस है,
सच कहूँ तो यारों मुझको शांति की तलाश है।।
कॉपीराइट: आदित्य शुक्ला ‘अकेला‘

2 विचार “शांति की तलाश…&rdquo पर;

टिप्पणी करे