मंगलायतन का सफर…

मानक

25 फरवरी 2012 की रात लंबी लड़ाई के बाद। चादर तान के सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन नींद निगोड़ी नाम कहां ले रही थी आने का। फिर भी सो गया मैं नहीं मेरा शरीर। मैं भटकता रहा। किसी तरह तन्‍हाई में गुजर ही गई ये रात। 26 फरवरी की सुबह जल्‍दी जाग गया, रात को सोया ही कब था जो जागता। नहाने के बाद ताजगी का अनुभव किया, आज का दिन कुछ खास था, पर किसी की कमी दिलन को सला रही थी, रह-रह कर टीस उठती रही थी दिल में। भरे मन से तैयार हुआ और चल दिया बस की ओर, जिससे हमें जाना था, मंगलायतन तीर्थधाम, अलीगढ़ से मंगलायतन विश्‍वविद्यालय के प्रागंण में। जहां नागरिक कठिनाईयां, लोकतंत्र और मीडिया विषय पर अन्‍तर्राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के दूसरे की तैयारियां चल रहीं होगी। लेकिन मेरे साथ आए विद्यार्थियों के समूह ने ‘हैप्‍पी बर्थ डे’ और तलियों की गड़गड़ाहट के साथ मेरा इस्‍तकबाल किया। अब क्‍या था जिसको भी पता चला हर कोई दौड़ पड़ा, सबकी जुवां पर बस एक ही स्‍वर था ‘हैप्‍पी बर्थडे टू यू’ सबका इतना प्‍यार देखकर, आंखें तो छलक की पड़ी, होठों पर खुशी की मुस्‍कान भी बिखर गई। सभी बस में सवार हुए। चल लिए गंतव्‍य की ओर।

परंतु ईश्‍वर को आज कुछ और ही मंजूर था, शायद वह मुझे ज्‍यादा देर खुश देखना नहीं चाहता था। बस चल पड़ी सभी एक दूसरे से बातें करने लगे। मैनें आपको ये तो बताया ही नहीं कि बस को गंतव्‍य तक पहुंचने में लगभग 1 घंटा लगेगा। मैं एकटक गेहूं के हरे-भरे खेतों को देख रहा था और खोज रहा था अपने मन की शांति को। मैं जैसे खो ही गया था। अचानक एक जोर का झटका लगा, और मेरा लैपटाप छिटक कर नीचे गिरा, जो अब टूट चुका था। अचानक हुई इस घटना ने हमारी शांति का अशांति में बदल दिया। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और मंगलायतन विश्‍वविद्यालय पहुंच गया। मन भारी था, रात की तन्‍हाई एक तो पीछा नहीं छोड़ रही थी, ऊपर से लैपटॉप टूट जाने के गम में कोई भी सत्र को बैठाने का मन नहीं किया। दिन का खाना भी भारी मन से खाया।

पर आज वह भी अकेली थी मेरे बिना। फोन पर हुई लम्‍बी बात के बाद, रात की लड़ाई को भूल गया और उसके प्रेम में लैपटॉप टूटने का गम भी भूला दिया। इसी बीच मेरे साथ आए विद्यार्थियों ने विश्‍वविद्यालय के कैफेटैरिया में मेरे लिए कैक काटने का बंदोबस्‍त किया। फिर एक ग्रांड सैलिब्रेशन ‘हैप्‍पी बर्थडे टू मी’। इस जन्‍मदिन को शायद मैं कभी भूला पाऊंगा।

धीरे-धीरे शाम आ चली थी। संगोष्‍ठी अपनी चरमा अवस्‍था पर थी। समापन सत्र के बाद सभी को जाने की जल्‍दी हो रही थी। कोई व्‍यवस्‍थाओं पर उंगली उठा रहा था तो कोई खाने पर, कोई सर्टिफिकेट पर। लेकिन मेरा मानना था, एक शानदार संगोष्‍ठी के शानदार ढंग से समाप्‍त हुई। रात को खाना ग्रहण करने के पुन: मंगलायतन तीर्थधाम जाना था। फिर सभी बस में सवार हुए, भोपाल से आया शोध छात्राओं का एक ग्रुप व्‍यवस्‍थाओं से खासा नाराज था। वो सब मिलकर स्‍वयंसेवी विद्यार्थियों को खरी-खोटी सुना रहे थे। मैने इस पर उन्‍हें शांत करने की कोशिश की, पर वो न माने। कुछ सूझता ने देख, बस वाले से मजेदार गाने लगाने के लिए बोल दिया, और शुरू हुए एक हसीन सफर। मैं तो थिरका ही, मैरे साथ पूरी झूम उठी। बस में कम जगह होने के बावजूद डांस की जो लहर दौड़ी, हर कोई उसमें शामिल हो गया। भोपाल का ग्रुप भी नाचा। इसमें सबसे ज्‍यादा योगदान रहा जानमानी वाइल्‍ड लाईफ फोटोग्राफर मालिनी सरकार का जो बैंगलौर से संगोष्‍ठी में भाग लेने आईं थी। शरीरिक अक्षमता के  बावजूद इनका उत्‍साह लोगों को सच में दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देने वाला था। हम नचाते-शोर मचाते कब मंगलायतन तीर्थधाम पहुंच गए, पता ही न चला।

इस तरह उदासी और अशांति भरा सफर, उल्‍लास और शांति में तब्‍दील हो गया और हम सब गवाह बने कभी न खत्‍म होने वाले सफर के। जो मंगलायतन की तरह हमारे लिए मंगल साबित हुआ। जिसे हम सभी को तउम्र याद रखेंगे।

7 विचार “मंगलायतन का सफर…&rdquo पर;

  1. आदित्य जी बहुत आच्छा लगा आपको देख के व पढ़ के भी आपसब के साथ हमारी यात्रा भी मंगल रही आप के इस लेख ने हमारी भी यादे ताजा कर दी वेसे उम्मीद है की इस यात्रा के कई और पहलुओ को जानने का मोका मिलेगा ……………………….

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