मां भारती बुलाती है…

मानक

लाल किले की चोटी पर हर बार तिरंगा फहराता है,

वीरों की गाथाओं का फिर गान सुनाया जाता है।

उपलब्धि बहुत कर ली हमने, ये यशोगान बन जाता है,

गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक को, याद किया जाता है।।

पर भूल गए हैं वो मकसद, जिस हित पाई थी आजादी,

कितनी माओं ने देखी थी, अपने आंगन की बर्बादी।।।

ऐसी आजादी की किरणें, अब धूमिल होती जाती हैं,

जागो भारत की संतानों, फिर मां भारती बुलाती है।।1।।

काले अंग्रेजों से लड़कर, मां का सीना छलनी है फिर,

कालेधन के खातिर नेता, लूट रहे अपना ही घर।

आजाद, भगत और बिस्मिल ने, यह स्‍वप्‍न नहीं देखा होगा,

इन रूहों ने जन्‍नत में भी, ज़ार-ज़ार रोया होगा।।

मां-बहनों का श्रृंगार गया, भाई-भाई का प्‍यार गया,

युवाओं के मन से भी इस धरती का उपकार गया।।।

ऐसे माहौल देखकर करके, मां की फटती छाती है,

जागो भारत की संतानों, फिर मां भारती बुलाती है।।2।।

बीत गए है वर्ष बहुत अब और नहीं सहना होगा,

फिर से आजादी पाने को एक युद्ध नया लड़ना होगा।

लिखो क्रांति के गीत उठो, और जीवन संगीत लिखो,

और भारत के माथे पर, फिर जगतगुरू सी जीत लिखो।।

‘श्रद्धा’ ‘विश्‍वास’ लिए उर में, ले मशाल चलना होगा,

अंधकारमय इस धरती का, आदित्‍य नया गढ़ना होगा।।।

आजादी के ये किरणें, खुशियों के गीत सुनाती हैं,

जागो भारत की संतानों, फिर मां भारती बुलाती है।।3।।———–कुमार आदित्‍य

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