मुझे बिकना है,
कोई खरीदेगा मुझे,
इस बाजार में,
जहां भावनाओं का मोल नहीं,
जहां प्यार की अहमियत न के बराबर,
जहां इंसानियत तो है ही नहीं,
अब तो बस मेरा शरीर ही है,
खरीद लो इसे,
मिल जाएंगे इसके मांस से कुछ पैसे,
जिससे भला हो जाएगा,
कुछ राष्ट्रवादियों का,
इसकी हड्डियों के चूरमे से मिट जाएगी,
कुछ गरीबों की भूख,
इस दुनिया की समस्याओं को
सुलझाने के लिए,
कोई खरीद लो मुझे,
बहुत आहत हूं मैं,
भ्रष्टाचार से,
महंगाई से,
किसान की मौतों से,
संसद की तौहीन से,
इसलिए मैं बिकना चाहता हूं,
शायद मेरे बिकने से,
सुधर जाएं इस देश के हालात,
कोई तो खरीदो मुझे,
मुझे बिकना,
अरे कोई तो बोली लगाओ!———-कुमार आदित्य