झूठे ख्वाव सी आजादी का वास्ता मत दे,
या खुदा मुझको ये सहारा मत दे,
टूट जाएंगी सब जंजीरें जुल्मों सितम की,
मुझको है तजुर्बा मुझे दगा मत दे।
अब भी भूखे हैं बच्चे उनके, जिनने पाला,
उनको उनके किए की सजा मत दे,
मेरे देश का हश्र क्या हो गया ऊपर वाले,
मौत दे दे मगर ऐसी बद्दुआ मत दे।
गर यूं ही चल रहा इस जमाने का दौर,
मुझे भी सूंकू भरी सुबह मत दे,
मुझे मालूम है तू अब नही आएगा यहां,
इन गरीबों को ऐसा आसरा मत दे।———कुमार आदित्य
टूट जाएंगी सब जंजीरें जुल्मों सितम की,
मुझको है तजुर्बा मुझे दगा मत दे।
बहुत खूब।
“सिसकियों और चीत्कारों से जितना भी हो आकाश भरा,
ककालों का हो ढेर, खप्परों से चाहे हो पटी धरा|
आशा के स्वर का भार पवन को लेकिन लेना ही होगा,
और जीवित सपनों के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा|”
आप सभी को स्वंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|